माया
( भारतीय संस्कृति में अपनी जड़ें फैलाता वैश्विक बाज़ारवाद , उपभोगवाद की प्रवृति , धनोपार्जन के भ्रष्ट तरीकें एवं झूठी प्रतिष्ठा की ललक हमारी संस्कृति को किस तरह खोखला कर रहीं हैं , इसका ज्वलंत उदाहरण पेश करने वाली यह कहानी २००५ में लिखी गई थी , जो लेखिका के कहानी-संग्रह ' सृजनी-सरोजिनी ' में संकलित हुई है.. सरकारी , गैर-सरकारी एवंआधौगिक संस्थाओं के अन्तर्निहित संगठनात्मक पदानुक्रम व्यवहार के यथार्थ धरातल का वर्णन करने वाली यह प्रभावशाली कहानी हिंदी पाठकों को सत्य के बारे में सोचने पर विवश कर देगी. अनुवाद के दौरान मैंने लेखिका की भाषा शैली को अक्षुण्ण रखने की चेष्टा की है और आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास पाठकों को पसंद आएगा.) माया “ इस अधिकारी को वश में करना हमारे लिए बहुत ही मुश्किल काम है। ” “ ऐसी बात नहीं है रतिकांत। वशीकरण क्रिया के अलग-अलग तौर तरीके होते हैं। ” हेना ने पति की बात का उत्तर दिया। “ उदाहरण के लिए किसी को रागानुराग भक्ति मार्ग पसंद आता है तो किसी को ज्ञानयोग का मार्ग। कोई तंत्र-साधना का ...