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दो कवि : एक दृष्टि - डॉ सुधीर सक्सेना और डॉ सीताकान्त महापात्र का तुलनात्मक अध्ययन

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  उपसंहार     जब मैं इन दोनों कवियों के समान पहलुओं को खोजने लगा , देखते ही देखते  मेरी आंखों के सामने कई नाम उजागर हो गए। जैसे पिता , ईश्वर , आदिवासी , मित्र , प्रेम , कविता , समय , शब्द , अनुवाद आदि ऐसे विषय मिल गए कि दोनों कवियों को आत्मसात कर एक कॉमन प्लैटफार्म पर लाने का मेरा कार्य शुरू हो गया। दोनों कवियों की कविताओं में मुझे काफी हद तक समानता नजर आई , मेरे संपूर्ण शोध में मुझे कहीं - कहीं तो ऐसा लगने लगा मानो सीताकांत महापात्र सुधीर सक्सेना की कविताओं में बोल रहे हो तो कभी - कभी सुधीर सक्सेना सीताकांत महापात्र बनकर अपनी कविताओं का वाचन कर रहे हो। यह तुलनात्मक अध्ययन मेरी आलोचनात्मक एवं गवेषणात्मक दृष्टि में अत्यंत ही उल्लेखनीय बन पड़ा है। जो हिंदी के पाठक सीताकांत महापात्र जी को नहीं जानते हों , वे कम से कम इस आलोचना पुस्तक के जरिए उन्हें जान सकेंगे। उसी तरह सुधीर सक्सेना जी की कविताओं का पाठक वर्ग विपुल होने के बाद भी