Posts

Showing posts from August, 2009

छिन्न-मूल

'छिन्न-मूल' शीर्षक की यह संवेदनशील कहानी मौलिक रूप से २००२ में लिखी गयी थी. पहले ओडिया पत्रिका 'नवलिपि' में प्रकाशित हुई और बाद में लेखिका का कहानी-संग्रह 'सृजनी सरोजिनी' में संकलित हुई. अनुवाद का शीर्षक मैंने पहले 'जड़-हीन' रखा था, पर मुझे लगा 'छिन्न-मूल' भी हिंदी शब्द है तो क्यों उसका शीर्षक मूल कहानी के अनुसार न रखा जाये. अनुवाद के दौरान मैंने लेखिका की भाषा शैली को अक्षुण्ण रखने की चेष्टा की है. आशा है पाठकों को पसंद आयेगी. छिन्न-मूल तनिमा ने सभी के लिए कुछ न कुछ ख़रीदा था, मगर बेटे के लिए कुछ भी नहीं. बड़ी असमंजस में थी कि बेटे के लिए क्या चीज खरीदें ! फिर, बेटे की उम्र जो ठहरी सत्रह-अठारह साल. पेंट व शर्ट के कपडे या अच्छे ब्रांड वाले जूते या कलाई-घडी ? इस नाजुक उम्र के मोड़ पर, बच्चों की पसंद, माँ-बाप की पसंद से काफी भिन्न होती है. माँ-बाप की अपनी पसंद से खरीदी हुई चीजों को देखकर, वे अपनी नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं.यही कारण था कि वह अपने बेटे के लिए अपनी पसंदीदा कोई भी चीज नहीं खरीद पाती थी. एक लम्बी यात्रा पूरी कर लेने के बाद वह अपने शहर की