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बलात्कृता

यह कहानीकार की सद्यतम प्रकाशित कहानियों में से है , जो न तो किसी दूसरी भाषा में अनुदित हुई है , न किसी कहानी संग्रह में संकलित हुई है. यह कहानी ' टाईम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप ' की ओड़िया पत्रिका ' आमो समय ' के जून , २००९ अंक में प्रकाशित हुई है. कहानी का मूल शीर्षक ' धर्षिता ' था , पर ' धर्षिता ' शब्द हिंदी में न होने के कारण मैंने उस कहानी का शीर्षक ' बलात्कृता ' रखना उचित समझा. कहानीकार की सद्यतम कहानी का प्रथम हिंदी अनुवाद पेश करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है. बलात्कृता क्या सभी आकस्मिक घटनाएँ पूर्व निर्धारित होती है ? अगर कोई आकस्मिक घटना घटती है तो अचानक अपने आप यूँ ही घट जाती है ; जिसका कार्यकरण से कोई सम्बन्ध है ? बहुत ही ज्यादा आस्तिक नहीं थी सुसी , न बहुत ज्यादा नास्तिक थी वह. कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि ये सब बातें मन को सांत्वना देने के लिए केवल कुछ मनगढ़ंत दार्शनिक मुहावरें जैसे है. सुबह से बहुत लोगों का ताँता लगने लगा था घर में. एक के बाद एक लोग पहुँच रहे थे या तो कौतुहल-वश देखने के लिए या फिर अपनी सहानुभूति

अमृत-प्रतीक्षा

प्रस्तुत कहानी लेखिका के ' ओड़िशा साहित्य अकादमी ' द्वारा पुरस्कृत कहानी - संग्रह ' अमृत प्रतीक्षारे ' में से ली गई है. मूल रूप से यह कहानी १९८६ में लिखी गई थी और तत्कालीन ओड़िया भाषा की प्रसिद्ध पत्रिका ' झंकार ' में प्रकाशित हुई थी. बाद में इस कहानी का अंग्रेजी रूपांतरण ' वेटिंग फॉर मन्ना ' शीर्षक से इप्सिता षडंगी ने किया , जो लेखिका के दूसरे अंग्रेजी कहानी - संग्रह ' वेटिंग फॉर मन्ना ' ( ISBN: 978-81-906956) में शीर्षक कहानी के रूप में संकलित हुई है. डॉ सरोजिनी साहू का विश्व की नारीवादी लेखिकाओं में एक विशिष्ट स्थान हैं. पाश्चात्य नारीवाद में उभरे मातृत्व के प्रति घृणा तथा वैराग्य के विपरीत मातृत्व को नारीत्व के एक अहम् हिस्सा मानने वाली यह कहानी लेखिका के नारीवादी विचारधारा को प्रस्तुत करती हैं . अमृत - प्रतीक्षा गर्भवती नारी को घेरकर वे तीन कर रहे थे अजस्र अमृत-प्रतीक्षा मगर बंद करके सिंह-द्वार सोया था वह महामहिम चिरनिद्रा में मानो रूठकर सोया हो बंद अंधेरी कोठरी के अंदर एक अव्यक्त रूठापन बढ