असार
( मानवीय संबंधों में बढ़ती दरारों को उजागर करने वाली लेखिका की यह कहानी उनके कहानी-संग्रह ' सृजनी सरोजिनी ' में संकलित है.इस कहानी का कथानक एक मरणासन्न माँ पर आधारित है .जीवन की असारता को प्रकट करने वाली इस कहानी में जीवन का यथार्थ जुड़ा हुआ है जो पाठकों के दिल को झकझोर देता है.इस कहानी के पात्र इतने सजीव है , पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो वे हमारी आँखों के सामने घूम रहे हो . इस कहानी के माध्यम से लेखिका के गहरे जीवन-बोध तथा सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचय मिलता है . ) असार अनुभा ने तन्द्रावस्था में देखा कि माँ ने अपनी नाक में लगी हुई नली को खींचकर बाहर निकाल दिया है। यह देखते ही अनुभा की तन्द्रा टूट गई। उसे तो यह भी अच्छी तरह याद नहीं था कि वह कब से माँ के बोझ पर अपना सिर रखकर सो रही थी। रात के लगभग तीन बजे थे कि भैया ने अनुभा की पीठ पर थपथपी देते हुए उठाया और कहने लगे "अब मुझे नींद आ रही है। तुम जरा उठकर माँ को देखती रहो।" " ठीक है भैया , आप ने मुझे पहले से ही क्यों नहीं जगा दिया ?" यहकहते हुए अनुभा माँ के सिरहाने की त